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भारतीय गणितज्ञ रामानुजन का व्यक्तित्व एवं गणित में योगदान

भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन इयंगर, जिन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। उन्हें गणित विषय में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला था, फिर भी उन्होंने महान गणितज्ञ की उपलब्धि हासिल की।

भारतीय गणितज्ञ रामानुजन का व्यक्तित्व एवं गणित में योगदान
भारतीय गणितज्ञ रामानुजन का व्यक्तित्व एवं गणित में योगदान

उनकी सफलता का मुख्य कारण था उनकी रुचि, आइए एक घटना से समझते हैं –

श्रीनिवास रामानुजन गणित विषय में अधिक रुचि रखते थे। वे हर कक्षा में गणित विषय को ज्यादा पढ़ते थे, कक्षा 11 वीं में उनकी गणित के प्रति रुचि का परिणाम इस प्रकार निकला कि वे गणित विषय को छोड़कर सभी विषयों में अनुत्तीर्ण हो गए। भले ही वे अपनी इस सूची के कारण 11 कक्षा में फेल हो गए लेकिन इसकी बदौलत ही भारत के महान गणितज्ञ के रूप में उभर कर आए।

जीवन परिचय –  
22 दिसंबर 1887 में कोयंबटूर जिले के इरोड नामक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में श्रीनिवास रामानुजन का जन्म हुआ। उनके पिताजी श्रीनिवास अयंगर, एक स्थानीय कपड़े की दुकान में मुनीम थे। उनकी माता जी का नाम कोमलताम्मल था। 1 वर्ष की आयु में अपने परिवार के साथ कुंभकोणम में आकर बस गए। उनका विवाह 22 वर्ष की उम्र में अपने से 10 साल छोटी जानकी से हुआ। मात्र 33 वर्ष की उम्र में आज ही के दिन (26 अप्रैल) 1920 में क्षय रोग के कारण वे पंचतत्व में लीन हो गए।

गणित में योगदान – 1918 में ट्रिनिटी कॉलेज की सदस्यता प्राप्त करने वाले रामानुजन, ऐसा करने वाले पहले भारतीय थे। गणित में अपने योगदान से उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की थी।


सूत्र और समीकरण – 

  • अपने अल्प जीवन काल में समीकरण और सर्वसमिकाओं का संकलन रामानुजन ने किया। पाई (Pi) की अनंत श्रेणी उनके महत्त्वपूर्ण कार्य में शामिल है।
  • पाई के अंकों की गणना करने के लिए भी उन्होंने कई सूत्र प्रदान किए, जो परंपरागत तरीकों से अलग थे।

खेल सिद्धांत –

  • चुनौतीपूर्ण गणितीय समस्याओं को हल करने और गणित को आसान बनाने के लिए खेल सिद्धांत के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

रामानुजन नंबर –

  • रामानुजन संख्या यानी 1729 गणित में रामानुजन का सबसे बड़ा योगदान माना जाता है।
  • यह एक ऐसी सबसे छोटी संख्या है, जिसे दो अलग – अलग तरीके से दो घनों के योग के रूप में लिखा जा सकता है।

रामानुजन के व्यक्तित्व से सीख ‌

- अन्य छात्रों की तरह रामानुजन का भी शुरू में पढ़ाई में मन नहीं लगता था। लेकिन उन्हें जानने की इच्छा बहुत होती थी,‌ वे अपने शिक्षकों से बहुत सवाल किया करते थे, जैसे – संसार का पहला इंसान कौन था? आकाश और पृथ्वी के बीच कितनी दूरी है? समुद्र कितना गहरा और बड़ा होता है?

इस तरह की प्रकृति वाले रामानुजन खोज संबंधित सवालों में अधिक रुचि रखते थे और गणित उनका पसंदीदा विषय था।

एक ही क्षेत्र में अधिक रुचि रखने की प्रवृत्ति ने ही रामानुजन को एक महान गणितज्ञ के रूप में पहचान दिलाई।

आज के समय में छात्र एक विषय या क्षेत्र को लेकर भ्रमित रहते हैं इसलिए वे ज्यादा सफल नहीं हो पाते हैं। एक महान प्रतिभा की पुण्यतिथि पर उनके नेक विचारों पर चलने का प्रण, हमारी सफलता के सफर की राहें आसान कर सकता है।

About the Author

Principal, Babu Daudayal SVM, Mathura

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